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चोपना : भू-माफियाओं का वन व कॉरपोरेशन कि भूमि पर अवैध कब्जा: प्रशासनिक निठल्लापन पर उठ रहे सवाल – Madhya Pradesh Voice

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चोपना : भू-माफियाओं का वन व कॉरपोरेशन कि भूमि पर अवैध कब्जा: प्रशासनिक निठल्लापन पर उठ रहे सवाल


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04/10/2024 8:18 PM Total Views: 63999

चोपना/ बैतूल। प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध लूट! यह है ग्राम चोपना की तस्वीर, जहां कुछ सशक्त भू माफिया कारपोरेशन व वन भूमि पर अपना दबदबा कायम कर चुके हैं। बीट क.415 की भूमि, जिसे कॉरपोरेशन विभाग ने इमारती लकड़ी के पौधों के लिए रोपा था, अब धान के खेत में तब्दील हो चुकी है। ये सब हो रहा है अवैध तरीके से, और प्रशासन की नाक के नीचे। यह मुद्दा क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है, खासकर तब जब सरकारी प्रयासों के बावजूद इस समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

वन भूमि पर अवैध कब्जा

ग्राम चोपना 3 के नजदीक, बीट क.415 पर बर्री निवासी रमेश यादव, चोपाना वनग्राम निवासी लखन यादव, जीवन यादव, धीरज यादव, हजारी यादव और मोहन यादव जैसे भूमाफिया इस वन व कॉरपोरेशन की भूमि पर कब्जा कर अवैध रूप से खेती कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि यहां इमारती लकड़ी के पौधों को अवैध रूप से काटकर बंधी बनाकर धान की फसल उगाई जा रही है। यह मामला गंभीर और चिंताजनक है, क्योंकि यह न केवल कॉरपोरेशन, वन प्रबंधन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

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इन भू माफियों द्वारा कब्ज़ा किया गया क्षेेत्र केवल एक भूमि नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक संतुलन को भी प्रभावित कर रहा है। जब एक ओर देश के प्रधानमंत्री प्राकृतिक संरक्षण के लिए पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों में लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्राम चोपना में भू माफियाओं द्वारा वन भूमि और बचे कुचे कॉरपोरेशन की भूमि का इस तरह से शोषण किया जा रहा है।

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प्राकृतिक संतुलन का नुकसान, पशु पालन की समस्या

ग्रामवासियों का कहना है कि इस अवैध कब्जे के कारण उन्हें चारागाह भूमि का उपयोग करने में कठिनाई हो रही है। पशुपालन के लिए आवश्यक भूमि की कमी के कारण ग्रामीणों को अपने पशुओं को चराने और निस्तर कार्य करने में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यह साफ है कि भू माफिया न केवल वन भूमि को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि ग्रामीणों के जीवन यापन पर भी प्रतिकूल असर डाल रहे हैं।

जानकारों का मानना है कि इस तरह के अवैध कब्जे और वन कटाई के कारण केवल कृषि भूमि का ही नहीं, बल्कि पशु पालन के लिए भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। पेड़ पौधों की कमी से जंगलों में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए भी संकट पैदा हो गया है। किसानों को चारागाह के लिए भूमि नहीं मिल पा रही है, जिससे पशुपालन प्रभावित हो रहा है।

प्रशासनिक अनदेखी

ग्रामवासियों ने इस मुद्दे को लेकर कई बार डीप्टी, रेंजर और बीट प्रभारी को शिकायत की है, लेकिन उनकी ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। बताया जा रहा है कि अधिकारी और भू माफिया आपस में मिलीभगत कर रहे हैं, जिससे यह मामला दबा दिया गया है। ग्रामवासियों ने मांग की है कि जिला स्तर पर इस अवैध कब्जे और कटाई की जांच की जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके।

क्षेत्र में कब्जाधारी भूमाफियाओं द्वारा किए गए अवैध क्रियाकलापों की जांच से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस प्रकार इन लोगों ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर रखा है। इसके चलते इलाके के लोग अब यह सोचने को मजबूर हैं कि अगर वक्त रहते शासन-प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो स्थिति अत्यंत गंभीर होने वाली है।

वन व कॉरपोरेशन कि भूमि का निजीकरण 

ग्राम चोपना का यह विवाद केवल इस गाँव का नहीं, बल्कि समूचे प्राकृतिक संसाधनों और कानूनी प्रक्रियाओं का मखौल उड़ाता है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर कब ध्यान देगा और अवैध कब्जे तथा कटाई के खिलाफ कौन सी कार्यवाही करेगा। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो मौका आएगा कि वन विभाग, राजस्व विभाग और कारपोरेशन के पास कागजों में भूमि होगी, लेकिन धरातल पर नहीं।

यदि ग्राम चोपना को बचाना है और इसके प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना है, तो प्रशासन को अवैध कब्जे के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। नहीं तो भू माफियाओं के कारण प्राकृतिक धरोहर हमेशा के लिए खो जाएगी।

क्या प्रशासन औंठी नींद से जागेगा? यह तो समय ही बताएगा!

 

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